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मुफ्त की रोटियों से उपजा बवाल

मध्यप्रदेश।

ये कैसी पत्रकारिता-
आजकल पत्रकार बनना ओर उससे भी ऊपर पत्रकारिता को नीचे गिराना बहुत आसान हो गया है। पत्रकार, अपने मूल काम से हटकर ब्लैकमेलर ज्यादा हो गए है। 

बहुत से ऐसे छोटे पत्रकार है जिनकी रोजी रोटी ऐसी ही कुकृत्यों से चलती है। 
मामला उठा है भोपाल के एक अखबार के लेख से।
इसमे शिक्षक समुदाय को लेकर बेहद  अपमानजनक टिप्पणी की गई हैै। शिक्षकों  की मर्यादा को कलंकित 
करने का प्रयास इस अखबार ने किया है, जिसके कारण पूरे शिक्षक समाज में बेहद रोष व्याप्त है। 

अखबार के लेख में शिक्षकों को 3 माह से मुफ्त की रोटी तोड़ने वाला बताया है जिस पर ही ये बवाल खड़ा हुआ है। 
 शिक्षक समुदाय ने इस पेपर की कतरन को वायरल कर लोगों को यह बताने का प्रयास किया है कि समाज में पत्रकारिता का स्तर कितना नीचे गिर चुका है।
 इन पत्रकारों को यह भी पता नहीं कि वह जो लिख रहे हैं, उसका सच्चाई से कितना लेना देना है। जब इस संबंध में शिक्षकों से बात की गई तो उन्होंने इस लेख पर कड़ा विरोध जताया । उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में सिर्फ शिक्षक ही घर नहीं बैठे थे लगभग सभी विभाग में ताले लगे हुए थे, लेकिन पत्रकारों को वह कभी नजर नहीं आएंगे । शिक्षक हमेशा से सॉफ्ट टारगेट रहा है। जिसका फायदा पत्रकार से लेकर नेता एवं अधिकारी उठाते आए हैं।
 शिक्षक उस पत्रकार से पूछते हैं कि क्या उसे पता है माह मई एवं आधे जून का तो वैसे भी अवकाश उन्हें मिला हुआ है । अन्य विभागों की तरह उन्हें अर्जित अवकाश की कोई पात्रता नहीं है।
 छुट्टी होने पर भी वह घर बैठे विभाग का कार्य पूरे लॉकडाउन में करते रहे हैं ।कई शिक्षक साथी तो कोरोनावरियर्स के रूप में अपनी ड्यूटी लॉकडाउन के पहले ही दिन से कर रहे हैं पत्रकार की ऐसी गंदी सोच समाज में शिक्षकों की छवि को धूमिल कर रही है।

 क्या है अवकाश का गणित

 शिक्षकों का कहना है कि उन्हें अन्य विभाग की तरह अर्जित अवकाश की पात्रता नहीं है। इसके एवज में विभाग उन्हें ग्रीष्मावकाश या विश्राम अवकाश प्रदान करता है । जो लगभग 35 से 40 दिन का होता है ।
 अन्य विभाग में जहां अर्जित अवकाश का नगदीकरण हो जाता है एवं रिटायरमेंट के समय पूरे सर्विस काल में अर्जित, अर्जित अवकाश जिसकी सीमा अधिकतम 300 दिन होती है, को अंतिम माह की सैलरी के अनुसार नकदीकरण में परिवर्तित कर दिया जाता है। जबकि शिक्षकों को ग्रीष्मावकाश में सिर्फ अवकाश मिलता है तथा अधिकतर शिक्षक इस दौरान भी विभाग के कई छोटे-मोटे कार्य करते रहते हैं । जैसे लोकडाउन के इस समय पूरे अप्रैल से लेकर जून तक ऑनलाइन पढ़ाई का कार्य शिक्षकों ने करवाया ।डीजी लैप एवं ऑनलाइन प्रशिक्षण शिक्षकों ने पूरे किए तो इस तरीके से देखा जाए तो शिक्षकों को इस बार ग्रीष्मावकाश मिला ही नहीं ।लेकिन उस इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए ऊपर से मुफ्त की रोटी तोड़ने का लांछन लगाना पत्रकार की निम्न मानसिकता को प्रदर्शित करता है।

कानूनी कार्यवाही के विकल्पों पर विचार

शिक्षक समुदाय में इस लेख के ऊपर काफी आक्रोश है। कई शिक्षक तो इससे  हटके उसके ऊपर कानूनी कार्यवाही करने पर भी विचार कर रहे हैं, तथा उस पत्रकार पर एफ आई आर दर्ज करवाने की मांग भी जोर पकड़ रही है । सोशल मीडिया पर पत्रकार और उसके नंबर वायरल हो गए हैं तथा शिक्षक अपने अपने तरीके से अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं।


 सौ बात की एक बात

 पत्रकारिता और उससे जुड़ा हुआ पैशा बहुत ही संवेदनशील होता है । ऐसे में पत्रकारों को चाहिए कि किसी भी मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए वे शब्दों का चयन सोच समझ कर करें । शिक्षक समाज के अंतिम बिंदु पर खड़ा हुआ वह व्यक्ति हैं जो न सिर्फ प्रत्येक परिवार से जुड़ा हुआ है वरण उसका पेशा काफी सम्मान का है ।विभाग में कई नाकारा लोग होते हैं लेकिन कुछ लोगों की वजह से पूरे समुदाय को बदनाम करना बिल्कुल भी समझदारी नहीं है।




आपको यह आलेख कैसा लगा जरूर बताइएगा मुझे अपने विचार व्यक्त कीजिएगा धन्यवाद।।


 (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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